‘ज्योतिषशास्त्र’ वेद-विज्ञानरूपी-शरीर का चक्षु है और इसी विज्ञान-चक्षु से प्राचीन महर्षियों और आचार्यों ने विश्व-विराट का दर्शन किया और उसकी सूक्ष्मतम गति-विधियों का क्रमानुगत अनुशीलन कर उसे परिवर्द्धित किया। इस ‘ज्योतिर्विज्ञान महाशास्त्र’ को इन महापुरूषों ने तीन विभागों में विभक्त किया। जो सिद्धान्त, संहिता और होरा नाम से विश्वविश्रुत हैं। इसके सिद्धान्तविभाग में सम्पूर्ण गणित भाग संहिता विभाग में वृष्टि, अद्रुतोत्पातदर्शन, वस्तु समर्घ-महर्घ, ज्योतिष प्रभृति और होराड्ांग में जातक के सम्पूर्ण जीवन के फलित का विवेचन किया गया है। इसका होराविभाग इतना विस्तृत है कि इस पर हजारों ग्रन्थ लिखे गये हैं, इसके विपुल-भण्डार को देखकर विश्वचकित है, इसके अनन्त भण्डार में भृगुसंहिता, सत्यसंहिता, कुबेरसंहिता, रावणसंहिता, वशिष्टसंहिता, बृहत्पाराशरहोराशास्त्र, बृहज्जातक, सारावली, वीरसिंहावलोक, सर्वार्थचिंतामणि जैसे अनेक जातक ग्रन्थ उपलब्ध हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ ‘गदावली’ आचार्य पं. चक्रधरभट्टविरचित है जो इसी जातक ग्रन्थावली परम्परा को समृद्ध करता है। यह ग्रन्थ वर्तमान में दुर्लभ हो गया था। इसका पुनः सम्पादन और टीका प्रस्तुत की गई है, जो ज्योतिर्विदों और ज्योतिषशास्त्र अनुरागियों के मन को मुदित करेगी। ‘गदावली’ ग्रन्थ मुख्यरूप से षष्ठभाव और रोगों पर प्रकाश डालता है। इस ग्रन्थ में ग्रहों और रोगों के आधार पर सूक्ष्म विवेचन किया गया है। इसलिए ज्योतिषशास्त्र का सामान्य ज्ञान रखने वाले चिकित्सकों के लिए भी यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।
विदुषामनुचरः
डाॅ. राजकुमार तिवारी
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