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Bilaspur Jile Ka Krashi Bhugol

370.00

  • Author Name: Dr. Anusuiya Baghel
  • Categories: Geography
  • ISBN: 978-93-84044-90-9
  • Language: English
  • Pages: 194
  • Publisher: Horizon Books
  • Size: 7x9
  • Book Type: E-Book & Paperback
Category:

डॉ. अनुसुइया बघेल (जन्म 30 मार्च 1957) ने पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर से भूगोल में प्रावीण्य के साथ एम्.ए. (1979) एवं एम् .फिल (1980) उत्तीर्ण करने के पश्चात जनसंख्या भूगोल में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की यह पुस्तक लेखिका के M.Phil शोध प्रबंधन प्रतिवेदन का संधोधित रूप है डॉ. बघेल सन  1988 से भूगोल अध्ययनशाला पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में व्याख्याता के पद पर तथा 2012-2015 तक  अध्ययनशाला में प्रोफेसर एवं अध्यछ रही वर्तमान में इस विभाग में प्रोफेसर है

डॉ. बघेल कृषि भूगोल के छेत्र में महत्वपूर्ण शोध कार्य कर एवं करवा रही है इनके पचास से अधिक शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीयशोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके है आप राष्ट्रीय स्टार के अनेक भौगोलिक समितियों की आजीवन सदस्य हैं आपके द्वारा भोगोलिक संगोष्ठियों में अनेक शोध पत्रों को सराहा भी गया है 2000 में राष्ट्रीय संगोष्ठी में स्वर्ण पदक एवं 2009 में Deccan Geographical Society द्वारा Geography Teacher Award से सम्मानित किया गया

मानव का प्रकृति के साथ सामंजस्य की जितनी स्पष्ट अभिव्यक्ति कृषि प्रतिरूप में मिलती है उतनी अन्य किसी भी आर्थिक क्रिया में नहीं किसी छेत्र की कृषि की सीमाएं वहां की प्राकृतिक दशाओ द्वारा निर्धारित होती है परन्तु ये सीमाएं बहुत संकुचित नहीं होती इन सीमाओं के अन्दर मनुष्य के समक्ष कई विकल्प रहते हैं जिनमें से वह उस विकल्प को चुनता है, जो प्राकृतिक कारकों का ही नहीं अपितु उसक वैज्ञानिक-तकनीकी ज्ञान के  स्तर, परंपराओं और अनके आर्थिक कारकों जैसे बाजार, श्रम, पूंजी, परिवहन जैसी सुविधाओं के अनुकूल हो। मानव-प्रकृति के इसी घनिष्ट संबंध की उपज होने के कारण कृषि भौगोलिक अध्ययन, जो कि मानव-प्रकृति तत्रं का अध्ययन करता है, का एक अभिन्न अंग है। भूगोल में इसी संबंध से उत्पन्न कृषि के क्षेत्रीय प्रतिरूपों के विविध आयामों का अध्ययन किया जाता है ।

कृषि के भूवैन्यासिक संगठन की प्रथम एवं महत्वपूर्ण व्याख्या जे. एच. वानथूनेन (1783-1850) के माॅडल में मिलती है। इसमें वानथूनेन ने एक बाजार केंद्र (एक नगर) के चतुिर्दक विस्ततृ क्षेत्र में नगर से दरूी के अनुसार कृषि भूमि उपयोग में परिवर्तन की स्पष्ट विवेचना की है, ‘लगान सिद्धांत’ पर आधारित यह माॅंडल पूर्णरूपेण आर्थिक है। चूिंक इस माॅडल में एक बाजार केंद्र एवं समरूप परिस्थितियों की कल्पना की गई है, अतः वास्तविक स्थिति परिस्थितियों में अंतर के कारण अलग हो सकती है । उल्लेखनीय है कि कृषि मात्र एक व्यवसाय नहीं है। यह एक जीवन पद्धति है। एक निश्चित प्रकार की कृिष-व्यवस्था के अंतगर्त संबंधित प्रदेश के कृषकों का रहन-सहन और सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आर्थिक व्यवस्था भी वैसी ही बन जाती है। उस कृिष व्यवस्था में कृषकों का एक लंबा अनुभव प्राप्त होता है। इन सब कारणों से कृषक नए परिवतर्न को शीघ्रता से स्वीकार नहीं करता। बदली हुई परिस्थितियों में यदि परिवर्तन हुआ भी तो वह अत्यंत धीमी गति से होगा। फलस्वरूप किसी भी क्षेत्र के कृषि प्रतिरूप में लंबे समय तक स्थायित्व बना रहता है ।

प्रस्तुत पुस्तक विदुषी लेखिका के एम.फिल. शोध प्रबंध पर आधारित है। अध्ययन लगभग 25 वर्ष पुराना अवश्य है तथापि क्षेत्र के कृिष प्रतिरूप में कोई व्यापक परिवर्तन नहीं होने के कारण यह आज भी क्षेत्र की कृषि प्रणाली का एक महत्वपूर्ण परिचायक है और आज भी प्रासंगिक है। लेखिका डाॅ. अनुसुइया बघेल एक गंभीर शोधकत्र्री हैं। उन्होने इस पुस्तक में छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले की कृिष के विविध आयामो, जैसे भूमि उपयोग प्रतिरूप, कृिष प्रविधियों शस्य प्रतिरूप, शस्य अभिलक्षण, कृिष दक्षता, इत्यादि का सकारण विश्लेषण किया है और जिले में कृषि की स्थानिक भिन्नताओं को दर्शाने हेतु कृिष-प्रदश्ेाों की पहचान की है। कृिष संबंधी ज्वलंत समस्याओं एवं उनके हल के उपायों का उल्लेख होने के कारण यह अध्ययन और भी सार्थक हो गया है । आशा है कि यह अध्ययन क्षेत्र की कृिष की जानकारी देने के साथ भावी शोधार्थियों का विधितंत्रीय मार्गदर्शक भी साबित होगा ।

डॉ. हरिशंकर गुप्त
से.नि. प्रोफेसर एवं अध्यक्ष
भूगोल अध्ययनशाला
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर

Author Name

Dr. Anusuiya Baghel

Categories

Geography

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Language

English

Pages

194

Publisher

Size

7×9

Book Type

E-Book & Paperback

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